मेरी डीठ से दुनिया....
और फाम में बसा अतीत......
(डीठ-दृष्टि
फाम-याद)
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जा चमक कि रोशनी से गुलजार हो जहाँ, ये देश है मेरा, हाँ देश है मेरा धुप अँधेरा है चहुं ओर यहाँ। बदरा बिन बारिश के घूम-घूम वापस होरे हैं, पीतल, सोना और सोना, पीतल हैं यहाँ
नींद न मार, खुद को उनींदा न कर, जो मर गया प्रेम, उसका मरने दे, यूँ घड़ी-घड़ी न सता, उसे जिंदा न कर, होंगी कुछ खूबियां भी तेरे यार में, यूँ हर बात में उसकी निंदा न कर, नींद न मार, खुद को उनींदा न कर।
क्या ये हवाएँ डाक नहीं लाती? सुनो! सन्देश भेजा था तुम्हारे नाम कई बार पहले, पूछना था, कहां हो तुम, कैसे हो? कुछेक बातें थी करने को, कुछ बीता समय रोने को। जवाब न आया, न ख्वाबों के शहर में कुछ रोनक दिखी, न कलम ने लहू ही उगला अबकी। सोचता हूँ चिंता हो कोई या खबर होगी कोई अच्छी।