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मैं आँसू क्यों न बहाऊँ

मैं आँसू क्यों न बहाऊँ.? जिस रोज अकेला पड़ जाऊँ, फिकर किसे खाऊं या बिन खाये सो जाऊँ. देर सबेर घर से निकलूँ, घर आऊँ, तिबारी में झाँकता सिर न पाऊँ, अंधेरा जरा बढ़ जाये, दाज्यू घर न आये, समय हो जब खाने का धाद किसे लगाऊँ, दूर कहीं से आऊँ, न छांछ, न छांव पाऊँ, वैसी ही लाड़ भरी नजरें कहाँ से मैं लाऊँ, गाँव जाऊँ, बल्द-गोरु तो फिर से पालूं, फेरते न रहना गोरुं को पानी पिला देना,       वो गरजती आवाज़ कहाँ से लाऊँ.? रंगीन दुनिया में सब तरह के लोग हैं ईजा, झुकी कमर, मोटा चश्मा, थकी हुई सांसे,     मैं उस खुदा को कैसे भूल जाऊँ,          मैं आँसू क्यों न बहाऊँ?

भाव शून्य

भाव शून्यता भी एक भाव है, ईजा का न होना भी एक घाव है, तू न समझेगा जाने दे भगवान इसे, तेरे सर पर अभी ईजा की छांव है। 8 साल (04 सितम्बर, 2012)