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न ख्वाब याद रहा, न शहर ख्वाबों का रहा कहीं, फाम ही नहीं रही जब तब डीठ कैसे होगी सही.. 

अंतर

हम हार की मिशाल और तुम किसी यूप की तरह              जाड़े की नरम धूप की तरह,              अनाथों में पितृरूप की तरह,              हम भू और तुम भूप की तरह।