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सन्देश

क्या ये हवाएँ डाक नहीं लाती? सुनो! सन्देश भेजा था तुम्हारे नाम  कई बार पहले, पूछना था, कहां हो तुम, कैसे हो? कुछेक बातें थी करने को, कुछ बीता समय रोने को। जवाब न आया, न ख्वाबों के शहर में कुछ रोनक दिखी, न कलम ने लहू ही उगला अबकी। सोचता हूँ चिंता हो कोई  या खबर होगी कोई अच्छी।