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पुरुष की महानता खातिर

मिट्टी, पानी और बयार धूम सिंह नेगी जी की यह पुस्तक पढ़ते हुए किसी विभूति का वर्णन सुन रहा था जिसमें लिखा था कि फलां ने बिना दहेज के सामान्य से परिवेश में ब्याह कर लिया और फिर उसकी पत्नी का नाम एकमात्र बार आकर पूरी जीवन यात्रा में समाप्त हो गया। क्या किसी स्त्री को चकाचौंध, जमावड़ा ढोल दमाऊ नहीं पसंद रहे होंगे, माना नहीं भी पसंद रहे होंगे तो क्या उसने पुरुष के साथ जीवन यात्रा प्रारंभ की तो बस किसी साधन की भाँति उसकी महानता के उपयोग मात्र हेतु? क्या कोई अभिलाषा, कोई अतृप्त स्वप्न उस स्त्री के जेहन में नहीं रहा होगा? हरेक महापुरुष जीवन व्यतीत करता है पूर्ण करके स्वर्ग सिधार जाता है पर वो स्त्री जो उसके साथ माना मात्र अंधेरे से कमरे की ही ही साथी रही हो उसके भी तो कोई दिवास्वप्न रहे होंगे कि किसी रोज सूरज की रोशनी में उसके सपने पूरे हों.!  या यह अभिलाषा पुरुष के प्रेम की खातिर, पुरुष की महानता के खातिर त्याज्य हो गयी। महान वो है जो साबित कर रहा है अथवा महान वो है जो उसकी महानता की खातिर मौन रही और मौन ही चली गई.?