14 अगस्त 2009 को लिखी गयी पंकियां
पक्षियों की चहचहाहट में, भौरों की गुनगुनाहट में, मुझे जीवन का खालीपन नज़र आता हैं। पत्तो की सरसराहट में, पशुओं की फुसफुसाहट में, मुझे जीवन का सूनापन नज़र आता हैं। सूरज की गरमा...
मेरी डीठ से दुनिया.... और फाम में बसा अतीत...... (डीठ-दृष्टि फाम-याद)