क्या
ओ समाज-समाज रोने वालों कभी समाज को देखा है क्या आधी थालियां फेंकने वालों भूखे की आँखे देखि है क्या बड़ी-बड़ी फेंकने वालों कभी किसी गरीब का हाथ थामा है क्या पैसे की भूख में मरने ...
मेरी डीठ से दुनिया.... और फाम में बसा अतीत...... (डीठ-दृष्टि फाम-याद)