देखना ही होगा।
देखो तो बसन्त की उम्मीद में सारी ऋत सोया नहीं है, पतझड़ तो शुरू हुआ भी है कि नहीं। ये वृक्ष हैं ना बड़ा बदरंग होता है, आके देखो, पतझड़ का मौसम है, देखना ही होगा। ये जो शाख पर नए पत्ते ...
मेरी डीठ से दुनिया.... और फाम में बसा अतीत...... (डीठ-दृष्टि फाम-याद)