देखना ही होगा।

देखो तो बसन्त की उम्मीद में सारी ऋत सोया नहीं है,
पतझड़ तो शुरू हुआ भी है कि नहीं।

ये वृक्ष हैं ना बड़ा बदरंग होता है,
आके देखो, पतझड़ का मौसम है, देखना ही होगा।

ये जो शाख पर नए पत्ते है यूँहीं आके बैठे से लगते है।
एक निरभ्र आसमां शाखों को देखना ही होगा।

बदस्तूर चलती ही रहेगी ये हवा, कभी ये डाल कभी वो डाल।
ये वृक्ष हैं ना किसी पहर भी नहीं सोता,
इसे तो हवा जगाती रहती है, इसे डोलना ही होगा।

मृदुल महक शूलों के बीच अजब संयोग है।
ये जो फूल हैं ना विविध रंगों के,
शूल कुछ नहीं करते, इन्हें तो खिलना ही होगा।

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