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तुझे संजीदा कहूँ कि बेहूदा, रखा तूने अज़ब शौक से है मुझे, कुछ मैले, उखले से बचपन के रंगों में नहाये... थे भी नहीं भी थे! पर जो भी थे सुहाते थे, वो चिथड़े जिन्हें पहनने का गुमान बस साल म...
मेरी डीठ से दुनिया.... और फाम में बसा अतीत...... (डीठ-दृष्टि फाम-याद)