कैद....।
उसने इस कदर दबा रखा है सीने में उसे, जंजीरें दर्द से कराह रही है। ये महोब्बत थी कि सुराख-ए-कैदखाना , जितने अंदर समाये, सहारा सा मिल रहा है बेवहा अंधेरे का। वो इस फन में माहिर निक...
मेरी डीठ से दुनिया.... और फाम में बसा अतीत...... (डीठ-दृष्टि फाम-याद)