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दंगा....

बारिश ने जमाई ऐसी कीच अबकी,      अक्ल ठिकाने आ गई है सबकी, लिबास तो नहीं बिगड़े, हृदय रंगे हुए है,                 सुना है फिर से दंगे हुए है. कुछ तो चिराग मिटे, कुछ बेघर ही हुए है, अभी और भी कितना टूटेगा क्या मालूम, अभी हाल-ए-समाज जर्जर हुए है, ये किस तिलिस्म की आगोस में हैं जहाँ वाले भगवान, बिगड़ा उनका नहीं जो दंगाई थे, इतिहास देखो जहाँ दंगा हुआ है, वो शान से फले-फुले हैं, बस हर बार जमींदोज तिरंगा हुआ है.

पहाड़

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ये पहाड़ है, प्रकृति का नजारा मात्र नहीं, यहाँ जीवन ही पहाड़ है, उम्र इंसान को ठहरा देती है, और ये आमा उम्र को ठहरा रही है. मेरी ईजा की उम्र ज्यादा तो नहीं थी 55-56 वर्ष की आयु में वो स्वर्गवासी हो गई थी. पर उनपर भी पहाड़ जैसा बोझ कुछ इस तरह ही था लगता है। कमर यूँही झुकी हुई थी, काम इस तरह ही कठिन। मैं अक्सर कहा करता था आराम कर आराम करने के दिन है। ये भी कोई काम करने के दिन है तो वो कहती कुछ नहीं थी बस मुझपर शादी का बोझ डालने को कहती थी और मैं हमेशा शादी की बात से भाग जाया करता, और मुद्दा यहीं समाप्त हो जाया करता. वो रोजमर्रा के इन्हीं कामों में और मैं अपने आप में अपनी दूसरी दुनिया बनाने में मग्न.  याद आता है हज़ारों फ़ीट ऊंची ऐसी पहाड़ियां जहां से कुछ गिर जाता तो वो नीचे 2-3 हजार फ़ीट की गहराई नापता। 2013 में मेरी एक मुंहबोली दीदी ऐसी ही पहाड़ी से गिर गई थी। मैं तो घर में न था पर लोगों ने बताया कि उनके शरीर को मात्र 5 किलो की थैली में भरके लाया गया था। इस तरह के कठिन जगहों में मेरी ईजा घास काटने जाती थी वो भी लगभग इतनी ही कमर झुकी झर्रियों से भरा चेहरा, मोतियाबिंद का ऑपरेशन के...