दंगा....

बारिश ने जमाई ऐसी कीच अबकी,
     अक्ल ठिकाने आ गई है सबकी,
लिबास तो नहीं बिगड़े, हृदय रंगे हुए है,
                सुना है फिर से दंगे हुए है.

कुछ तो चिराग मिटे, कुछ बेघर ही हुए है,
अभी और भी कितना टूटेगा क्या मालूम, अभी हाल-ए-समाज जर्जर हुए है,

ये किस तिलिस्म की आगोस में हैं जहाँ वाले भगवान,
बिगड़ा उनका नहीं जो दंगाई थे, इतिहास देखो जहाँ दंगा हुआ है,
वो शान से फले-फुले हैं, बस हर बार जमींदोज तिरंगा हुआ है.

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