बिंदू
बिंदू अगस्त महीने के आखिरी दिन हल्की धूप और हवा के बीच आँगन में कुर्सी डालकर तीन लोग बैठे थे। अचानक ही जोर से रोने के साथ मंद सी आवाज़ सुनाई देती है इतना ही था फिर साथ हां बिंदु के गले में हाथ डालकर 77-78 वर्षीय दीलपु कह रहा था। बिंदु यानि दीलपु के लम्बे सँघर्ष की सहगामिनी , उसकी पत्नी जो पिछले 5-6 महीने से लगातार बीमार चल रही थी। दीलपु के बच्चों ने बहुत से डॉक्टरों को दिखाया तो किंतु कोई समाधान नहीं निकला था , वह पेट सम्बन्धी समस्याओं से जूझ रही थी। बिंदु उमर में दीलपु से बहुत छोटी थी , इस समय उसकी उमर 54-55 वर्ष की थी पर बीमारी , संघर्ष और आँखों पर लगे मोटे चश्मों से वो दीलपु से भी अधिक उमर की दिखती थी। दीलपु और बिंदु की कहानी का शायद ये अंतिम दौर था। इनकी कहानी शुरू होती है शोबन सिंह नाम के दो बुड्ढों की वार्तालाप से , जिसमें वो अपने बच्चों के विवाह की चर्चा कर रहे हैं। बड़ा रोचक लगता है कि बिंदु और दीलपु दोनों के पिता का नाम शोबन सिंह ही था। शायद इसी वजह से इनके संघर्षों की साझा गाड़ी भी चल निकली थी। जिस समय इनका विवाह हुआ दीलपु...