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Showing posts from March, 2020

बिंदू

बिंदू अगस्त महीने के आखिरी दिन हल्की धूप और हवा के बीच आँगन में कुर्सी डालकर तीन लोग बैठे थे।   अचानक ही जोर से रोने के साथ मंद सी आवाज़ सुनाई देती है   इतना ही था फिर साथ हां   बिंदु के गले में हाथ डालकर 77-78 वर्षीय दीलपु कह रहा था। बिंदु यानि दीलपु के लम्बे सँघर्ष की सहगामिनी , उसकी पत्नी जो पिछले 5-6 महीने से लगातार बीमार चल रही थी। दीलपु के बच्चों ने बहुत से डॉक्टरों को दिखाया तो किंतु कोई समाधान नहीं निकला था , वह पेट सम्बन्धी समस्याओं से जूझ रही थी।   बिंदु उमर में दीलपु से बहुत छोटी थी , इस समय उसकी उमर 54-55 वर्ष की थी पर बीमारी , संघर्ष और आँखों पर लगे मोटे चश्मों से वो दीलपु से भी अधिक उमर की दिखती थी। दीलपु और बिंदु की कहानी का शायद ये अंतिम दौर था। इनकी कहानी शुरू होती है शोबन सिंह नाम के दो बुड्ढों की वार्तालाप से , जिसमें वो अपने बच्चों के विवाह की चर्चा कर रहे हैं। बड़ा रोचक लगता है कि बिंदु और दीलपु दोनों के पिता का नाम शोबन सिंह ही था। शायद इसी वजह से इनके संघर्षों की साझा गाड़ी भी चल निकली थी। जिस समय इनका विवाह हुआ दीलपु...

तेरे जाने के बाद

हर रात भीगी सी रही जब, बिन सहारे सो न पाया तेरे जाने के बाद, हर कोना काटने है दौड़ता, उस घर मैं जा न पाया तेरे जाने के बाद, बातें बहुत हुई मगर, किसी की सुन न सका तेरे जाने के बाद, खेला नहीं शतरंज ताउम्र मगर, कोई हरा न सका तेरे जाने के बाद, करहन भुला न सूरत तेरी, दर्द मगर याद न रहा तेरे जाने के बाद, रुंआसा हर रोज रहा, रोना मगर याद न रहा तेरे जाने के बाद,