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Showing posts from April, 2020

क्या!     अरे..

एकांत! उस तरफ पीठ, निगाहें! भीगी हुई डीठ, मैला आँचल! नई फसल की रीठ, सर्द हवा! जली हुई अंगीठ, छुरा! मित्र की पीठ, शर्म! बेहया अव्वल ढीठ, पहचान! कद बड़ा गरीठ, गुण! जैसे फल कवीठ, ज्ञान! चला...

वक्ती इश्क़

एक शहर था, मैं था, ठिया था, ठियेदारी थी, अर्जी थी, अर्जीनवीस थे, बातें थी, रातें थी, कुछ नींद थी, कुछ उनींद थी, शहीदी की जमात थी, तरकस था, तीर थे, अनेकों मगर वीर थे, एक तीर, मगर सटीक, खाल...