शरद...
नसीहतें...! नहीं ! शिकायतों का अंबार लगा गया, कहा तो नहीं पर शायद कहना था, मैं बदल रहा हूँ, जरा सा भावुक वो, ले गया, जहाँ अक्सर मैं भटकाव के बाद जाया करता हूँ, कहता है याद है तुझे.? रात पेशानी में बड़ा जोर रहा मेरे.. क्या भूल गया मैं.? संवरते-संवरते कहीं बिखरने लगा हूँ शायद.! या फिर बिखरा सा था कभी सँवरा ही नहीं, जो भी हो... मेरे लड़खड़ाने की आवाज़ तुझ तक पहुंच तो रही है न, फिर भी अडि...