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सावन यानि देवताओं का कैलाश काल

सावन का महीना और आप यदि सीमांत के किसी गाँव मे जाते हैं तो हर घर में एक ही चीज आम होगी वो हर घर के दरवाजे और खिड़कियों में लगे काटें और बिच्छू घास की टहनियां। ये किसी भी नये व्यक्ति के किये कौतूहल हो सकता है पर सीमांत के लिए ये एक परम्परा है जो सदियों से चली आ रही है। सावन को काला महीना कहा जाता है इस माह में कोई शुभ कार्य नहीं किये जा सकते क्योंकि इस काल में आराध्य देवता कैलाश वास में होते हैं। सावन के शुरू होने से पहले गाँवों में पूजा शुरू हो जाती हैं, देवता अपने धामी/पश्वा में अवतरित होकर बताते हैं कि वे इस तिथि को कैलाश जा रहे हैं, हर बरस की भांति किसी एक देवता को ग्राम रक्षा की जिम्मेदारी भी मिलती है। वो सब इसी दिन तय हो जाता है देवता चेताते हैं कि हमारी अनुपस्थिति में क्या नहीं करना हैं और कैसे बचे रहना है।  सावन शुरू होने से पूर्व की शाम को ही सिन्ना(बिच्छू), किलमोड़ा और ऐरुवा (एक विशेष प्रकार का कांटेदार झाड़ीनुमा पौधा) लेकर लोग अपने घरों के दरवाजों, खिड़कियों तथा गोठ(पशु निवास स्थल) में लगा देते हैं मान्यता हैं कि देवताओं की अनुपस्थिति में कोई बुराई घर में प्रवेश न कर सके इसलि...

शब्द

रच लेते हैं कुछ शब्द ही एक कहानी को, कभी शब्दों की अपनी कहानी नहीं होती। कतरा-कतरा बयां कर देते हैं हर दर्द को, कभी शब्दों की अपनी जुबानी नहीं होती।। भेद लेते हैं हाड़-माँस के आदमी को, कभी शब्दों को अपनी कटार चलानी नहीं होती।। जरूरतानुसार बेच लेते हैं खुद को, कभी शब्दों को अपनी दुकान सजानी नहीं होती।  जीत लेते हैं पिछड़ के भी दिलों को, कभी शब्दों की अपनी अगवानी नहीं होती। खुद ही बना लेते हैं हरफ़ ये खरीददार को, कभी शब्दों की अपनी जजमानी नहीं होती।। पलट लेते हैं हर धारा की दिशा को, कभी शब्दों की अपनी नौजवानी नहीं होती। स्वयं घेर लाते है मेहमानों को, कभी शब्दों की अपनी मेजबानी नहीं होती।।