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Showing posts from March, 2017

बिन इजा के

घर से बहुत दूर हो गया बिन इजा के कुमार से मज़दूर हो गया बिन इजा के तन्हा मगर सारथी हो गया बिन इजा के मय का साथी हो गया बिन इजा के बिना दिये का बाती हो गया बिन इजा के मेरे जज्बातों क...

कुछ ऐसे ही

तोड़ दी डोर मैंने इंसानियत की फिर से, उठ चुका विश्वास किसी का फिर मुझ पर से, फिर बोल उठा आज मैं अपने मन से, कि मत जला आशाओं के दीप, बुझ जायेंगे ये आँसू रूपी जल से, मत बनना सहारा मेरा ...