कुछ ऐसे ही

तोड़ दी डोर मैंने इंसानियत की फिर से,
उठ चुका विश्वास किसी का फिर मुझ पर से,

फिर बोल उठा आज मैं अपने मन से,
कि मत जला आशाओं के दीप,
बुझ जायेंगे ये आँसू रूपी जल से,

मत बनना सहारा मेरा आगे से,
कह दिया मैंने वक्त से,
हार जीत से तोड़ दी दोस्ती आज से,

समझौता किया सुबह-शाम से,
कि मतलब रखना सिर्फ अपने काम से,

मत आना मेरे जेहन में आज से,
कह दिया मैंने ख्वाब से,

मत सुलाना अपनी बांहों में आज से,
प्रार्थना की है मैंने रात से,

मत उठाना गर मैं गिर जाऊँ कहीं,
वायदा लिया है मैंने दिन से,

मत लगाना गले मुझे अभी,
लगाई है गुहार मैंने मौत से,
अभी और बहुत कुछ बाकि रह गया है,
लेना शायद इस ज़िन्दगी से,
टूट नहीं सकता नाता इस दुनिया से,
भले फिर से खेले मेरी जिंदगी से,

तोड़ दी डोर मैंने इंसानियत की फिर से....

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