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एक और साल बीता
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एक और खुशनुमा साल, बीता तेरे बगैर, खुशफ़हमियां सारी ख़त में लिखी मिलेंगी पढ़ लेना, पढ़ना न आये अब तक भी तो पढ़वाकर कर सुन लेना, सिरोलों की महक़, पिनालु उबले, पा लेता हूँ देख लेना, पांव के छाले, खड़ी चढ़ाई की थकन, जला हुआ खाना भी खा लेता हूँ देख लेना. शाम की तन्हाई, ठंडी-ठंडी छांई, मर जाने की दुहाई कभी दोहराता हूँ सुन लेना, फिर रात भर जगकर देखा है तेरे दर्द को, जरा सी आँख लगी तो मर जाऊँ देख लेना, कुछ रिश्तों की खाइयाँ अब तक वैसी है, तेरे जाने से क्या हुआ, हो सके तो आकर भर देना, अगली दफे खुदा इंसाफ करना, दुनिया छीन लेना पूरी, मां को मेरे हिस्से कर देना... 04 सितम्बर, 2012