Posts

   सजी-धजी भी तुम कलन्दर सी लगी, हालाँकि तुम हर हाल में मुझे सुंदर ही लगी..!

उजला सा है

    ये श्वेत कुछ जला सा है, ठहराव देखिए उसकी लगता है,  वो शख्स दूर तक चला सा है, देख रहा हूँ ये मद्धम अंधियारा, ये अंधियारा कुछ उजला सा है,     ये श्वेत कुछ जला सा है।     वो गाँव से आया था, गाँव को सीने में लेकर कुछ अजीब नजरों से देखता है, वो शहर में आकर   जान लो ये शख्स नया नहीं है बस अनेला सा है            ये श्वेत कुछ जला सा है।     मेरे किरदार में हँसे जा रहे है इस कदर,  मेरा लिहाफ जैसे चलता फिरता चुटकुला सा है            ये श्वेत कुछ जला सा है,       ये अंधियारा कुछ उजला सा है। *अनेला - यह शब्द कुमाउनी में ऐसे गाय/बछड़े के लिए प्रयुक्त होता है जो पहली बार गौशाला से बाहर निकला हो, आम तौर पर जीवन भर बंधे रहने के कारण उसके लिए बाहर निकलना और चलना भी अजीब सा अनुभव होता है। ऐसे ही व्यक्ति जब शहर की भीड़ में अचानक गाँव से आकर शामिल होता है तो कुछ ऐसा ही व्यवहार करता है।

स्त्री का घर होना..

बड़ी बातों में मर्दाना, गौरव समझते हैं आप....! एक स्त्री का घर होना, आसान समझते हैं आप..! आपका घर सँवरा है, आपके रिश्ते सँवरे हैं, बाल सँवरे हैं, बच्चे भी सँवरे हैं, स्त्री के होने भर से, समाज के हर पहलू सँवरे हैं. सोच कर देखें..! करते रहे जो आजीवन आपका अनादर, कौन निभाये वो रिश्ते-नाते, राठ-बिरादर, आप तो काट चुके थे कन्नी, मान चुके थे सबको बेगाना, फिर कहता हूं छोड़ दो ये बिन बात का मर्दाना, स्त्री का सम हो जाना नहीं है कोई पाप, एक स्त्री का घर होना, आसान समझते हैं आप..!
तोड़ देती है रिश्ते खूँ के आपसी, बड़ी बेदर्द होती है भगवान मुफ़लिसी...

अकेली औरत

रूही की ज़िंदगी तलाक के बाद कई सवालों और तानों से भरी हुई थी। समाज की नजरों में वह अब सिर्फ "अकेली तलाकशुदा औरत" थी, जिसकी ज़िंदगी पर लोग अपने हिसाब से राय बनाने लगे थे। लेकिन रूही के लिए यह सफर बस अपने बेटे के भविष्य को संवारने का था। वह अपनी मम्मी बहनों और भाई के घर रह रही थी, मगर कभी-कभी ऑफिस से मिले अपार्टमेंट में भी रुक जाती थी। ऑफिस में उसके कई साथी थे जिनमें से एक था रोहन । वह उसका सहकर्मी था, लेकिन रूही उसे भाई जैसा मानती थी और सम्मान देती थी। रोहन शादीशुदा था, एक नन्हीं बेटी का पिता भी था, लेकिन उसकी एक कमजोरी थी— शराब । वह अक्सर पीता था, कभी-कभी हद से ज्यादा। रूही की ज़िंदगी में एक व्यक्ति था—एक दोस्त, जो कभी-कभी उससे मिलने ऑफिस के अपार्टमेंट आता था। रोहन को यह बात खटकने लगी। उसे लगने लगा कि रूही का इस व्यक्ति के साथ कोई रिश्ता है। यह सोचते-सोचते वह रूही के प्रति अपनी सोच बदलने लगा, मानो उसकी 'अकेलापन' किसी और चीज़ की मांग कर रहा हो। पहली घटना – एक भयानक रात उस रात रोहन बुरी तरह नशे में था। वह लड़खड़ाते हुए रूही के दरवाजे पर आया। "रूही, मैं समझ सक...

पुरुष की महानता खातिर

मिट्टी, पानी और बयार धूम सिंह नेगी जी की यह पुस्तक पढ़ते हुए किसी विभूति का वर्णन सुन रहा था जिसमें लिखा था कि फलां ने बिना दहेज के सामान्य से परिवेश में ब्याह कर लिया और फिर उसकी पत्नी का नाम एकमात्र बार आकर पूरी जीवन यात्रा में समाप्त हो गया। क्या किसी स्त्री को चकाचौंध, जमावड़ा ढोल दमाऊ नहीं पसंद रहे होंगे, माना नहीं भी पसंद रहे होंगे तो क्या उसने पुरुष के साथ जीवन यात्रा प्रारंभ की तो बस किसी साधन की भाँति उसकी महानता के उपयोग मात्र हेतु? क्या कोई अभिलाषा, कोई अतृप्त स्वप्न उस स्त्री के जेहन में नहीं रहा होगा? हरेक महापुरुष जीवन व्यतीत करता है पूर्ण करके स्वर्ग सिधार जाता है पर वो स्त्री जो उसके साथ माना मात्र अंधेरे से कमरे की ही ही साथी रही हो उसके भी तो कोई दिवास्वप्न रहे होंगे कि किसी रोज सूरज की रोशनी में उसके सपने पूरे हों.!  या यह अभिलाषा पुरुष के प्रेम की खातिर, पुरुष की महानता के खातिर त्याज्य हो गयी। महान वो है जो साबित कर रहा है अथवा महान वो है जो उसकी महानता की खातिर मौन रही और मौन ही चली गई.?

भ्रष आचरण का मूलभूत जाति और क्षेत्र वादिता

पिछड़े वर्ग से सम्बंधित आस्था नाम की एक बालिका जो अभी-अभी 12वीं करके मेडिकल की तैयारी में लगी थी उसने मेडिकल में प्रवेश के लिए अनिवार्य परीक्षा उत्तीर्ण तो की किंतु ज्ञात हुआ कि किसी लड़की ने अपने फर्जी दस्तावेज लगाकर उसके स्थान पर सीट हासिल कर ली थी। आस्था अपने अधिकार की अभिरक्षा के लिए न्यायालय के समक्ष दरकार लगाने को मजबूर हुई। मालूम हुआ कि बालिका के पिता आर्थिक रूप से सक्षम थे तो उन्होंने बेटी आस्था का एडमिशन किसी प्राइवेट कॉलेज में डेंटिस्ट की पढ़ाई के लिए करवा दिया और कोर्ट केस चलता रहा। कुछ महीनों बाद आस्था केस तो जीत गई पर चूंकि उसके पिताजी ने एडमिशन प्राइवेट कॉलेज में करवा दिया था तो वह सुनवाई में नहीं जा पाई। जज साहब जो इस केस की सुनवाई कर रहे थे ने इसका लाभ उठाकर उस सीट पर अपनी भतीजी को एडमिशन दिलवा दिया। आस्था जब एडमिशन लेना चाह रही थी तो मालूम हुआ कि जज साहब ने ही खेल खेल दिया अब वह न्याय की गुहार किससे लगाए। कुछ बरस पहले की बात है मेरे एक करीबी साथी ने एक किस्सा सुनाया था जिसे सुनकर मैं कोई प्रतिक्रिया नहीं दे सका किंतु लगभग ऐसा ही कुछ किस्सा दो रोज पहले मेरे साथ तब हुआ। सरक...