भागिनि एक लोकगाथा

राधे-राधे.!

एक लोकगाथा है भागिनि की।
भागिनि माने भाग्य लिखने वाली। यह कथा बचपन मे पिताजी सुनाते थे और कहते थे जो भाग्य में है वही होगा।

भागिनि हररोज अपने काम में व्यस्त रहती थी और उसकी एकमात्र लड़की थी जिसे समय नहीं दे पाती थी। एक रोज उसकी लड़की खिन्न होकर पूछती है कि ईजा तू रोज इतना बिजी रहती है मुझे जरा भी समय नहीं देती सबकी ईजाएँ कितना प्यार करती है अपने बच्चों को। भागिनि उत्तर देती है चेली मैं लोगों के भाग्य लिखती हूँ मेरे पर काम का बहुत जिम्मा है इसलिए मैं तुझे समय नहीं दे पाती। बेटी बिदक कर कहती है ईजा तू झूठ कहती हैं भाग्य भी कौन लिखता है! अगर तू सच कहती है तो बता मेरे भाग्य में क्या लिखा है?

ईजा थोड़ा रुककर बोलती है चेली कैसे बताऊँ यह बहुत रहस्य का काम है। बेटी कहती है या तो ईजा तू झूठ कहती है या फिर सच कहती है तो मेरे भाग्य का बता। ईजा विवश होकर उसके भाग्य का लेख बताती है कि चेली तेरे भाग्य में लिखा है तेरा विवाह तेरे बेटे से ही होगा।
बेटी यह सुनकर हंसती है और प्रण लेती है कि अपनी माँ को झूठा साबित करेगी।

बेटी दूर अकेले जंगल में रहने लगती है न कोई आदमी न कोई ग्रामीण जीवन हर तरफ बस जंगल और जंगली जानवर।

कई साल बीतने पर बेटी को एक दिन एक रुमाल प्राप्त होता है जो किसी राजकुमार का था वह उसकी सुंगध लेने लगती है। उस रुमाल की सुगंध, राजकुमार के पौरुष प्रभाव से वह गर्भवती हो जाती है। उसे एक पुत्र प्राप्त होता है यह समझकर कि उससे विवाह न करना पड़े इसलिए उसे वह उसी रुमाल में लपेटकर पानी में बहा देती है और नितांत एकांत जीवन व्यतीत करती है।

कई बरस बीत जाने पर एक राजकुमार पुनः जंगल मे शिकार करने आता है और उस स्थान तक पहुंच जाता है जहाँ वह लड़की रहती थी। राजकुमार पहली नजर में ही उस कुमारी से प्रेम करने लगता है और उससे शादी का प्रस्ताव देता है।
बहुत अनुनय करने पर लड़की मान जाती है और सोचती है किसी से शादी कर लूंगी तो शायद ईजा की बात झूठी हो जाये। वह प्रस्ताव स्वीकार कर लेती है और विवाह कर लेती है। विवाह के पश्चात जब वह राजकुमार के महल में पहुंचती है तो देखती है कि वही रुमाल राजकुमार के कक्ष में था जिसमें उसने बच्चे को लपेटकर फेंका था। राजकुमार को पूछने पर वह बताता है कि वह इसी रुमाल में अपने माँ-बाप को नदी में मिला था इसलिए इसे सम्भाल कर रखा हुआ है। इतना सुनकर वह राजकुमार को सच बताती है और जहर खाकर अपने प्राण त्याग देती है।

इस कथा का सार अब समझ आता है एक तो ये कि भाग्य लिखने वाली होकर भी वह अपनी लड़की का भाग्य सही नहीं लिख सकती थी, यानि वह कर्म प्रधान थी। दूसरा कि भाग्य में जो लिखा है वह होकर ही रहेगा स्वयं भगवान भी उसे टाल नहीं सकते हैं। 


राधे-राधे! 
राधा तो किशन की थी पर, किशन राधा का नहीं हुआ। ऐसा नहीं था कि किशन डर गया था, राधा से प्रेम नहीं था पर, राधा किशन का मेल लिखा ही नहीं था सो मेल हुआ ही नहीं।

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