समर्पित......

ये क्या उदास बैठी हो,
कभी मुस्करा भी दो ना।

ऐसे क्यो लटकाया है अपना प्यारा मुखड़ा,
कभी खिलखिला भी दो ना।

यूं ही बर्बाद कर दोगे ये कीमती आंसू,
इनको मेरी तिजोरी से रखवा दो ना।

खूबसूरत होना अलग बात है पर इतना प्यारा कौन होता है,
ये उदासी क्यों है बता दो ना?

इतना प्यारा मुखड़ा हो सामने सब मर जाएं जिसमें,
मैं उसे प्यार क्यों ना करूँ बता दो ना?

नाराज़गी भी बड़ी भली रही माना तुम्हारी,
कभी नाराजगी में हमें भी मना लो ना।

यूँ तो खेल-खेल में कह देते है सब कुछ,
कभी बिन कही भी समझ लो ना।

यूँ तो बहुत आते हो हर दिन सपनों में,
कभी बिन कहे सामने भी आ दो ना।

-----समर्पित

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