स्त्री का घर होना..
बड़ी बातों में मर्दाना,
गौरव समझते हैं आप....!
एक स्त्री का घर होना,
आसान समझते हैं आप..!
आपके रिश्ते सँवरे हैं,
बाल सँवरे हैं, बच्चे भी सँवरे हैं,
स्त्री के होने भर से,
समाज के हर पहलू सँवरे हैं.
सोच कर देखें..!
करते रहे जो आजीवन आपका अनादर,
कौन निभाये वो रिश्ते-नाते, राठ-बिरादर,
आप तो काट चुके थे कन्नी,
मान चुके थे सबको बेगाना,
फिर कहता हूं छोड़ दो ये बिन बात का मर्दाना,
स्त्री का सम हो जाना नहीं है कोई पाप,
एक स्त्री का घर होना,
आसान समझते हैं आप..!
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