"सुभ"+"अंश" सुभांश

आज 11वां दिन तुम्हें अब तक उकेर भी नहीं पाया हूँ तुम्हें बेटा!

सुनो अंश जब तुम बड़े होओगे तो पढ़ना कितना नासमझ, बेतरतीब बाप है तेरा।

बेटा थोड़ी देर में नामकरण होना है अब तुम सांसारिक संस्कारों का हिस्सा बन चले हो बेटा, अब तुम्हें बस इसी पाश में बंधे रहना है। 

बेटा तेरा दुनिया मैं आना बड़ा अप्रत्याशित था, दिन 8 सितंबर, मेरी इजा की पुण्यतिथि के 4 दिन बाद। 

तेरी इजा को सुबह फोन किया तो उदासी थी उसके लहजे में पूछने पर बताया कि हल्का दर्द है। मैंने यूँही कह दिया डॉ. के पास चले जाओ। दिन तक मानी नहीं दर्द भी हल्का था पर दिन के बाद वो चले ही गई आखिर डॉ. के पास वहाँ पहुंचकर उसने फोन किया और कहा कि स्थिति थोड़ी अजीब है डॉ कह रही है गर्भ में तेरे संरक्षण को जो पानी था वो रिस गया है और तुरंत ऑपरेशन करना पड़ेगा। तेरी इजा बेटा बहुत साहसी है तेरे बाप सी डरपोक नहीं, उसके ये कहने पर मैं अपने ऑफ्फिस में था और मैं हड़बड़ा कर रह गया। मैं तुरंत घर को निकला कपड़े पैक किये और चल दिया तेरी इजा की तरफ। मेरा दिमाग सुन्न हो चला था अक्सर हो जाता है ऐसे मामलों में। कुछ सूझ नहीं रहा था शाम के 5 बजने को थे और तुम आने की तैयारी में तुम्हारी इजा बेटा बेहोसी के हाल में रही होगी। मैं निकल चुका था 5:21 में नानी का फोन आया कि "तुम्हारा लड़का हुआ है"  बेटा नामकरण का संस्कार आज होना है पर नाम तुम्हारा पहले से तय था "अंश"। ये लिखूंगा तो शायद पढ़कर तुम्हें अच्छा न लगे बेटा मैं छवि नाम से तुम्हारी कल्पना एक लड़की के रूप में कर रहा था, पर अब सामने तुम थे। मुझे सूझ कुछ नहीं रहा था। बस इतना लिख सका "सुनो अंश" बस।

शायद तुम सुन सकते थे मेरी धड़कनों को जो बस में लगातार धधक रहे थे। अभी तुम्हारी इजा से बात नहीं हो पाई थी। मैं बिना सोए रात भर बस में बस मोबाइल देखता रहा लोगों के शुभकामना संदेश प्राप्त हो रहे थे। मेरे मन में अभी भी द्वंद्व था किस लिए द्वंद्व था .? दरअसल गाँव में सब लोग विशेष कर तुम्हारे दो बड़े भाई (बड़े और छोटे ताऊ के लड़के) छिपला केदार यात्रा को जाने थे, गाँव में मेला होना था, तीर्थ यात्रा होनी थी और बेटा तुम्हारा होना कहीं इस मेले इस यात्रा को रद्द न कर दे। पर बेटा ऐसा नहीं हुआ सब लोग खुशी-खुशी गए और कहा कि शुभ में शुभ होना अच्छा होता है। यहीं से मेरे जेहन में एक और नाम आया जिसे "शुभ" कहने के बजाय मैंने तुम्हारी इजा और बौज्यू के नाम से "सुभ" रखना उचित समझा। बेटा मैं अभी तुम्हारी मुखडी भी नहीं देख सका था तुम्हारी इजा से बात भी नहीं कर सका था कई सारे विचार आ रहे थे। पर मैंने तभी निश्चित कर दिया कि नाम "सुभ"+"अंश" सुभान्श (सुभांश) निश्चित कर दिया। ये बेमानी थी कि अब तक तुम्हारी इजा से बात भी नहीं हुई वो कैसी हो रही है समय-समय पर नानी से हाल पूछ रहा था। सुबह 4:31 में तुम्हारी इजा का फोन आया तो मैं तुमसे मिलने के निकट पहुँच चुका था। सुबह 5:23 में मैं तुम्हारे पास था बेटा। तुम्हारी इजा से बात की तुम्हें निहारा मैं बयां शायद न कर सकूं पर बड़ा ही अजीब बैचैन करने वाला पल था ये क्या करूँ समझ नहीं आ रहा था तुम्हारी इजा को देखूं तुम्हें देखूँ। 

खैर बेटा आगे लिखूंगा अब समय हो चला है एक संस्कार जिसे नामकरण संस्कार कहते है को शुरू करने का ये बस एक फॉर्मल सी क्रियाकलाप है नाम तो पूर्व नियत हो चुका है तुम्हारा  "सुभ"+"अंश" सुभांश।

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