Posts

Showing posts from July, 2022

आओ एक उजियारा लिखते है

आओ एक उजियारा लिखते है, अंधेरों की बसावट में एक सवेरा लिखते है, थक गए है मेहनत कर,  सुनो कब तक यूँही बैठे रहोगे, चलो सफर को थामकर कुछ प्यारा लिखते है, आओ मिलकर एक उजियारा लिखते है। भले धूप बहुत है इस सफर में सुनों, रोशनी चुरा कर चलो सफर रात का करते है, कुछ बवंडर आते है, आते रहेंगे डगर में, चलो बदलाव  बिन बात का करते है,  हर तीज की तरह आ जाता है अंधियारा,  क्यों न इसे ममेरा-फुफेरा लिखते है, आओ एक उजियारा लिखते है।

अंश 10 माह

Image
सवालिया निगाहें,  जिज्ञासु हरकतें,  तुमसे ही है जीवन की सारी बरकतें। 10 माह के हो गए हो तुम मेरे बेटे,  तुम पर बस अपना बचपन जी रहा हूँ, अजीब झुरझुरी होने लगती है सोचता हूँ,  मैं तुमसा रहा होऊंगा तो मेरी जिज्ञासाओं में शायद ये सब न था जो तुम्हारे पास है। मात्र इन 10 माह में तुमने हवाई यात्रा के अलावा सभी चीजों की सैर कर ली है और बेटा मैं अब तक इन सबके लिए असहज हूँ।  ये 10 माह कैसे बीते बेटा पता नहीं पर इतना कहूँगा कि मैं तुम्हारे साथ पूरा अपना बचपन जियूँगा और तुम्हें तुम्हारे को बचपन जीने की सारी स्वतन्त्रताएँ दूंगा। हालाँकि ये स्वतन्त्रता मेरे बचपन से कम ही होगी बेटा क्योंकि तू मेरे बचपन के गाँव में नहीं मेरे जवानी के शहर में है।
अन् यारी  रात मा,  बारा मा जलको बत्ती जस्तो उम्मीद चाइंछ, यस बेकार दिन भये को  निखुट हुँदा पछि फ त्तु र चलछ, यो जमाना कस विचित्रय  ठाउँ हो भन्दा, राम्रो आपन जन्म को  ठाउँ लाग्छ। ढेरै माया गर्दा पनि  आँखामा लगाउने गाजल के घाव लाग्छ।

चुप्पी

नहीं मैं ऐसा नहीं कि अक्सर खामोश हो जाऊँ और खामोशी लिए रहूँ देर तक।  घर जहाँ मैं पैदा हुआ, बड़ा हुआ सीख ली दुनिया भर की, मैं यहाँ बैठकर बस यही सोचता हूँ कि मैं यही हूँ या फिर वो हूँ जो दुनिया के सम्मुख हूँ, हँसता हुआ, समझदार, हल्का, वजनी, नासमझ, सोचता, विचार करता।  सवाल बहुत है पर आज फिरसे वही अजीब सी शांति पसरी हुई है मेरे जेहन में, मेरे आस-पास सब जगह। मैं चुप हूँ, चुप्पी लिए हुए हूँ। कारण नहीं है कुछ भी आँखे जरा नम है। उन अंधेरों में जिनसे अक्सर मैं डर जाया करता था आज उन्ही अंधेरों में खामोश बैठा हूँ, एक बुत की तरह, बिल्कुल बुत की।तरह। आज सालों पहले का अकेलापन फिरसे डरा रहा है मुझे मैं अकेला हूँ या फिर दुनिया में खोकर मैंने जरा सा भुला दिया खुद को और मैं यही हूँ जो अभी हूँ? ये सवाल हमेशा सवाल ही रहेगा क्योंकि मैं फिरसे दुनिया की भीड़ में सम्मिलित होने को कुछ रोज बाद जाऊँगा और फिर उसी दुनिया का हो जाऊँगा।  ना ये शांति होगी कहीं पसरी हुई ना मैं चुप रहूंगा, चुप्पी मुझे शायद जँचती ही नहीं है। हैं ना अजब चुप्पी।
असंख्य लोगों में एक चेहरा होना, चेहरे में असंख्य होना दोनों पृथक है,  ठीक वैसे ही जैसे मालगाड़ी में असंख्य पेटियां और पेटी में असंख्य डब्बों का होना।