अंश 10 माह

सवालिया निगाहें, जिज्ञासु हरकतें, 
तुमसे ही है जीवन की सारी बरकतें।

10 माह के हो गए हो तुम मेरे बेटे, तुम पर बस अपना बचपन जी रहा हूँ, अजीब झुरझुरी होने लगती है सोचता हूँ, मैं तुमसा रहा होऊंगा तो मेरी जिज्ञासाओं में शायद ये सब न था जो तुम्हारे पास है। मात्र इन 10 माह में तुमने हवाई यात्रा के अलावा सभी चीजों की सैर कर ली है और बेटा मैं अब तक इन सबके लिए असहज हूँ। 

ये 10 माह कैसे बीते बेटा पता नहीं पर इतना कहूँगा कि मैं तुम्हारे साथ पूरा अपना बचपन जियूँगा और तुम्हें तुम्हारे को बचपन जीने की सारी स्वतन्त्रताएँ दूंगा। हालाँकि ये स्वतन्त्रता मेरे बचपन से कम ही होगी बेटा क्योंकि तू मेरे बचपन के गाँव में नहीं मेरे जवानी के शहर में है।

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