मेरा देश, देश नहीं मुकुट है धरा का,
ये चोटी, चोटी नहीं लकुट है अजा का,

आओ कभी तो साल-दो साल ठहर भी जाओ,
दो-चार पल का तो अंधेरा भी सुकून देता है।

ये जो पहाड़ हैं पहाड़ नहीं है दरअसल,
ये हौंसले हैं हिमाल के रहवासियों के,

देखो! पहाड़ से हौसलें हैं जहाँ,
मेरा गाँव हैं वहाँ, 
मेरा गाँव हैं वहाँ।।

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