Posts

Showing posts from April, 2023

कौंला रस्ता

कौंली उमर, कौंला प्रेम, कौंला-कौंला रस्ता ठैरा, नीली कमीज, खाकी पेंट, एक कांधे में बस्ता ठैरा, फौजी बनूँल, ब्याह करूँल, सपना उसका सस्ता ठैरा। ऊँचे-ऊँचे पहाड़ ठैरे, हाल पर खस्ता ठैरा। कौंली उमर, कौंला प्रेम, कौंला-कौंला रस्ता ठैरा।

हिमालय की गंध

टप-टप गिरते पानी की आवाज़, बाहर आती भयंकर नदी, बादल और पत्थरों के खिसकने की डरावनी आवाजें, घर में कैद करने के लिए बहुत था यह सब कुछ पर  घर में टिके नहीं रहना, उसके दो कारण थे एक तो बरसात में घर रोता बहुत था और दूसरा कारण था कि घर में अपनी उम्र का कोई नहीं था मुझसे बड़ा भाई जो कि मुझसे 9 साल बड़ा था। कुल मिलाकर घर में रुके रहने का कोई सवाल ही नहीं था, फिर भी घनी बारिश में रुके रहना मजबूरी थी। आज बच्चे के साथ सोचता हूँ काश उस समय भी रेन-रेन गो अवे जैसी कोई कविता सुनी होती तो जरूर गा रहा होता। हमारा बचपन अलग था पर बरसात में विशेष कर लगता कि ये बारिश होती क्यों है। ईजा बारिश से पहले ही पत्थरों में लगा हुआ ढेर सारा पाम इकट्ठा कर लेती थी और उसे छत में लगे पत्थर के स्लेटों के ऊपर ऐसे बिछा देती थी कि पत्थर चूंकर घर को रुलाये नहीं, ये पियास कई हद तक सफल भी होता था पर सतझड़ी यानि लगातार 7 दिनों की बरसात होने या फिर कई बार 2-3 दिन की बारिश में ही घर रोने लगता फिर हर जगह जहाँ से पानी चूंकर गिरता था वहाँ बर्तन रख देती थी ईजा। बर्तन भरने का  इंतजार  करो फिर उसे फेंको फिर भरने दो फिर फेंको ...

बिन मतलब

कभी बनके शाम आजा, कभी बिन बात के सहर बन। नीरस से गांव के गुण क्यों, चल ना आबाद जैसे वो शहर बन। अच्छा तो क्या नहीं लगता, सब लगे है, कभी बिन मलतब आये जैसे वो पहर बन। क्या पा लिया है उस रस्ते चल-चलाकर, गौरव से जहाँ चल सके, चल ना; वो डगर बन। कितना सरल बना दिया है ना तूने इसे! जीवन है तेरा । आके सब फँस जाये,  चल ना वो भँवर बन। कभी तबाही की लहर बन, कभी चमचमाती दोपहर बन, कभी बनके शाम आजा,   कभी बिन बात के सहर बन।