ख्वाब देखा पर उसका मुकम्मल अंजाम न हो सका,
शहर वहीं रहा, सफर वही रहा हासिल मुकाम न हो सका..


मैं अपनी तरफ जरा जल्दी में था, वो अपनी बानगी में मग्न थे, 
शहर तो बस गया ख्वाबों का, बस शहरयार न बन सके।

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