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Showing posts from 2017

एक सपना ही तो है।

तू है तो सुनहरा बहुत, पर ख्वाब ही तो है! आज नहीं तो कल टूट जाएगा, बस एक काँच सा रिश्ता ही तो है! ये प्रलय- सा मन में मेरे क्यों उठा है बता जरा, तू सपनों का हेडक्वाटर नहीं मेरे, बस एक सप...

माँ

क्या लिखूँ कि क्या लिख दूँगा, तू कलम में समाती नहीं कभी। कभी सोचूँ भुला के आगे जाऊँ कहीं दूर चोट लगते ही फिर आ जाती है, तू माँ है ना, जाती नहीं कभी। तेरे नाम का दीया तो जलाता नहीं ...

समर्पित......

ये क्या उदास बैठी हो, कभी मुस्करा भी दो ना। ऐसे क्यो लटकाया है अपना प्यारा मुखड़ा, कभी खिलखिला भी दो ना। यूं ही बर्बाद कर दोगे ये कीमती आंसू, इनको मेरी तिजोरी से रखवा दो ना। खूब...

जाहिर है।

कभी-कभी यूँही कुछ शब्द कब रचना बन जाते है पता ही नहीं लगता आज ही थोड़ा सा अनकहा महसूस हो रहा था तो पाएलो कायलो की जाहिर पढ़ने बैठ गया तो कब कुछ लाइन्स निकल गयी पता ही नहीं चला- 👇 ये ...

बिन इजा के

घर से बहुत दूर हो गया बिन इजा के कुमार से मज़दूर हो गया बिन इजा के तन्हा मगर सारथी हो गया बिन इजा के मय का साथी हो गया बिन इजा के बिना दिये का बाती हो गया बिन इजा के मेरे जज्बातों क...

कुछ ऐसे ही

तोड़ दी डोर मैंने इंसानियत की फिर से, उठ चुका विश्वास किसी का फिर मुझ पर से, फिर बोल उठा आज मैं अपने मन से, कि मत जला आशाओं के दीप, बुझ जायेंगे ये आँसू रूपी जल से, मत बनना सहारा मेरा ...