मेरा घर
एक पेड़ तो नहीं ,
छोटी डलिया था मेरा घर।
उड़ान भरना सीखा तो नहीं,
पर फैलाये थे पहले पर।
सदियां बीत गयी, एक मंज़र बीत गया,
देखा नहीं मैंने मेरा घर।
इन बरसातों से कतराता, आँसू बहाता मेरा घर,
मन करता वापस जाऊं खूब सवारूँ मेरा घर,
बचपन दिखलाता, पास बुलाता सपने सजवाता मेरा घर।
एक पेड़ तो नहीं ,
छोटी डलिया था मेरा घर।
क्या लेके जाऊं कहाँ से राह खोज लूँ,
माँ की ममता लिए खड़ा रहता था मेरा घर,
जाऊँ कैसे कौन बुलाये!
माँ नहीं हैं अब मेरे घर.... ...........✍
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