खुदा जाने
मेरे जग में यूँ तो बहुत सी कृतियाँ हैं हर कहीं फैली हुई,
कुछ जीवंत, कुछ उजड़ सी गयी, कुछ बिल्कुल ही मैली हुई,
किस ओर डपट जाऊं किसी रोज खुदा जाने,
अज़ीम भी है, तज्ञ भी है, अब्तर भी है, उमड़-घुमड़ यहां जैसे एक थैली हुई,
तुम आये तो मेरे तसव्वुफ़ की ख़ातिर, कब तसव्वुर बन गए खुदा जाने,
दाम लगाऊँ कि कहीं छुपा लूँ तुम्हें, कि दाख़िल करूँ कि रीत से चलने दूँ,
कब तलक किस मोड़ तक साथ हो खुदा जाने,
पयाम-ए-खुदा समझ नहीं आता प्रेम होता भी हैं भाग जाता भी हूँ कहीं,
सफर-ए-जिंदगानी कहाँ तक हो खुदा जाने,
तुम रुमानियत की बातें करते हो साहब मन डरता है,
रोम-रोम में शामिल हुए तो क्या होगा खुदा जाने,
अजीज हो मेरे यूँहीं बने रहना ताउम्र,
उम्र कब तलक हो खुदा जाने।
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