जीना न आया

गरल था या सुधा था बहुत,
बस मुझे ही पीना न आया।
जिंदगी घुली थी वहां,
बस मुझे ही जीना न आया।।

साथ मिला भी दूर तलक,
बस मुझे ही चलना न आया।
गिरते-पड़ते रहने को पहाड़ सा सफर था,
बस मुझे ही गिरना न आया।
हाथ बड़े थे उठाने को मुझे,
बस मुझे ही उठना न आया।
सरल शीशे सी साफ जिंदगी,
मुझे ही जीना न आया।।

तरल नीर सा बहाव जीने में,
बस मुझे ही बहना न आया।
हर दौर यूँ समाया था उसमें,
बस मुझे ही सम्भलना न आया।
उस जैसा धैर्य नहीं कहीं,
बस मुझे ही ठहरना न आया।
हर जवाब था मौजूद,
बस मुझे सवालात करना न आया।
हर हरफ़ उसका जीवन लिखता है,
बस मुझे ही जीना न आया।।

जाल चारों तरफ अनूठा बना था,
बस मुझे ही धागा पिरोना न आया।
भरे बचपन की याद करूँ तो क्या,
वो बचपन जिसमें एक खिलौना न आया।
बोझ हल्का सा हो सकता था बहुत,
बस मुझे ही ढोना न आया।
हर ताल में थी सिसकी जिंदगी की,
बस मुझे ही वो जीना न आया।।

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