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Showing posts from March, 2019

बरी

महज़ दो गज चले थे कि , उन्हें भारी सा लगने लगा, कुछ अतीत ने बांधा उन्हें, कुछ समय ने प्रभाव में लिया, उनके शब्द उनकी हुकूमत, उनकी ही किलेबंदी है, कोई जाकर बतला दो कि, आज़ाद थे वो आज़ाद ...

शौक

एक टुकड़ा लकड़ी उठाकर,           एक कश्ती बनाने निकले थे हम, एक छोर नदी का पकड़कर,           अतीते-गम डुबाने निकले थे हम, टांका जोड़ा, कील लगाई, मुश्किल से कश्ती बनाई,              डू...

भिखारी ठहरे हम...

जी रहे हैं बड़ी मृदुलता से,             भीख से मिला जीवन, निर्मित पूर्ण कोमलता से,             दारिद्र अपना मन..! अपनापन देख पाती नहीं,                 हुई नज़रे अंधकारी, कहाँ सम्भ...

करूँ कैसे

सुबह उठकर जातरा(हथ चक्की) चलाना, जौ-मंडुवा पीसकर रोटी बनाना, फिर दूध निकालना, मट्ठा बनाना, चढ़ती हुई धूप और अपने कामों से निवृत होकर जंगल/घास/लड़की लेने जाती दुनिया को देखकर हड़ब...

करूँ कैसे

सुबह उठकर जातरा(हथ चक्की) चलाना, जौ-मंडुवा पीसकर रोटी बनाना, फिर दूध निकालना, मट्ठा बनाना, चढ़ती हुई धूप और अपने कामों से निवृत होकर जंगल/घास/लड़की लेने जाती दुनिया को देखकर हड़ब...