बरी
महज़ दो गज चले थे कि , उन्हें भारी सा लगने लगा, कुछ अतीत ने बांधा उन्हें, कुछ समय ने प्रभाव में लिया, उनके शब्द उनकी हुकूमत, उनकी ही किलेबंदी है, कोई जाकर बतला दो कि, आज़ाद थे वो आज़ाद ...
मेरी डीठ से दुनिया.... और फाम में बसा अतीत...... (डीठ-दृष्टि फाम-याद)