शौक
एक टुकड़ा लकड़ी उठाकर,
एक कश्ती बनाने निकले थे हम,
एक छोर नदी का पकड़कर,
अतीते-गम डुबाने निकले थे हम,
टांका जोड़ा, कील लगाई,
मुश्किल से कश्ती बनाई,
डूबते रहे प्रयास हमारे, डूबती रहीं नावें,
छूटती रही कश्तियाँ सारी, हम शौकीन कहलाये..!
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