भिखारी ठहरे हम...

जी रहे हैं बड़ी मृदुलता से,
            भीख से मिला जीवन,
निर्मित पूर्ण कोमलता से,
            दारिद्र अपना मन..!

अपनापन देख पाती नहीं,
                हुई नज़रे अंधकारी,
कहाँ सम्भालते आप सा वैभव आखिर,
                हम ठहरे भिखारी...!

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