वो...
मेरी कलम थामकर लिखता है, बेशकीमत है फिर भी बिकता है, नासमझ तो जरा भी नहीं असरार जानता है, जाने पर उसे सूरज में भी चाँद दिखता है...! लिखने को सीरसागर भरा पड़ा है उसकी स्याह में, मग़र....! व...
मेरी डीठ से दुनिया.... और फाम में बसा अतीत...... (डीठ-दृष्टि फाम-याद)