बचपना

आवाज़ आती थी चीखने की, कोई कह रहा था शैतान है,
सुनो, आज फिर दोपहरी हैरान है,
न पूछो उदासी का सबब साहेब,

हमने भी पाई है जवानी बचपन खोकर,
यूँ तो खुशनुमा ही देखा है चेहरा उसका,
वो रह-रह के रोया करता है खिलौना तोड़कर...!

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