"टीस"
वो शख्श मुझे कहीं और का रुख़ करने ही नहीं देता,,
जब भी सोचा कि अब कुछ दूरियाँ इख़्तियार कर लूँ .........तब कुछ यूँ हो जाता है कि वो पगफेरे की सी रस्म अदा करने आ ही जाता है,,,,,,वापस मेरे दिल की दहलीज में,
"बात बेबात पे वो अपनी ही बात करता है.......जाने कैसा शख्स है अपने शिकवों की पोटली मेरे मत्थे मढ़ता है,,,"
बड़ा बुरा रोग पाला है मेरे हाथों ने भी जब भी कहकहे होते हैं ये हाथ कलम थामकर कुछ मरहम सा लिखने लगते हैं,,
उसकी दुखती नब्ज़ पर चाहे हाथ किसी का भी पड़ा हो पर.............. हक़ीम जैसे दवा की पोटली लेकर मुझे ही उसकी बीमारी का इलाज़ करना होता है,,,
आज एक बार फिर कृष्णा को सालों पहले के वो साल याद आ गए और उसी दुखती नब्ज पर फिर से लहू सा तरल कुछ बहने लगा......................
जब उसके ही किसी मुँहबोले अपने ने उससे कहा-"मांगा हुआ सामान इस्तेमाल कर बड़ा इतरा रहा है".....
आंखों में वही बीता हुआ मंजर वही शामियाना सा उठ गया जिसे गुज़रे ज़माने हो गए,,,
कितना अजीब सिलसिला है इस ज़िन्दगी का जैसे दुनियाँ गोल होती है वैसे ही वक़्त भी गोल होता है घूम-फिरके वो वापस उसी रास्ते पे लाता है जहाँ से पड़ाव शुरू किया होता है ,,,,वही बातें होने लगती हैं जो बातें बीते दिनों की टीस हुआ करती थी,,,
आज अंदर फ़िर कुछ बिखरा सा महसूस हुआ जैसे उन दिनों हुआ था जब एक शख्श ने कहा था -"दूसरे के टुकड़ों में पलने वाला".....
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