मेरी वर्णमाला

अ से अनार आ से आम वर्णमाला के इस रूप रंग से परिचित लोगों के लिए मेरी ओर से एक नई वर्णमाला, जो पग-पग पर बदलती रहती है, समय-समय पर बदलती रहती है इसके विविध रंगों और रूपों को पिरोना और फिर उसे वर्णमाला के रूप में बुनकर साज-सज्जा देकर रंगना शायद बेहतर विकल्प हो सकता था फिर भी इसे रंगना एक बेहतर विकल्प है।

अ से अखबार कहूँ, नित का
आ से कहूं आतंक, हित का
इ से कहूँ  इबारत कहूँ,
ई से कहूं ईशान, राष्ट्र का
उ से कहूँ उत्तर, भ्रष्ट का
ऊ से मैं ऊखल रहन दूँ, 
ऋ से ऋग्वेद लिख डालूं।
ए से बस मैं एक हो जाऊं,
ऐ से ऐरा-गैरा बन जाऊं,
ओ से ओढ़ लूँ हया को,
औ से औरत बनने दूँ।
अंक से अंकगणित बन जाऊं,
अ: को मैं पुनः बनाऊं।
इन स्वरों को पुनः रचाऊं।

क से कला बनूँ कलाकार की,
ख से खड़ाऊँ बन जाऊं,
ग से गगन बनूँ असीमित,
घ से घर को घर रहने दूँ।
ङ को भी न छोड़ूँ खाली,
बनाऊं इसे भी सवाली।

च से चल पडूँ सफर में,
छ से छप जाऊं जगत में,
ज से जहान को कर दूं एक।
झ से झरना बन जाऊं
ञ को बहाकर आगे ले जाऊं





Comments

  1. गुरुदेव को प्रणाम व आपकी कविता को चरणस्पर्श

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