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Showing posts from December, 2021

बरी

लड़खड़ाई आवाज़, मय में जरा सा डूबा था स्वर, उसने जो कहा  एक योजनावधि का बोझ एक पल में छूमंतर हो गया। मैं जिस अपराधबोध से जूझता आ रहा था इतने बरस, एक मयशीन आवाज़ ने मुझे बरी कर दिया। मैं खुश भी था, और कुछ अन्तस् में दुःख भी था, जो भी हो मैं कभी न किये गए अपराध से, कल रात बरी हो गया।

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बस कभी सोचता हूँ कि किसी का तुम सा न होना, तुम सा न सोचना, बेवकूफी नहीं हो सकती।          हां ये है कि तुम्हारी बात से हम इत्तेफाक रखते हैं। पर हमेशा कोसना और कोसते चले जाना, किसी आइए विषय पर जिसे आप पसन्द नहीं करते। शायद अच्छा नहीं।

पुराना दिन

एक पुराना दिन,  पुराना ही घर, इजा-बाबू, मैं मुझे कहीं निकलना है, आने के समय बाबु बाहर बैठे है, इजा अंदर है, मैं तैयार होकर मिलने गया, इजा ने जा लाटा जा कहते हुए 1-1 के दो सिक्के दिए, और कहा मेरे पास यही है, मैं इजा को देखा वो रो रही है, मैं भी लिपट के रो पड़ा, मैं इजा को बोला इजा चल मेरे साथ वो तैयार न हुई,  और मैं जबरन उसे उठाकर ले आया बाहर से बाबू को भी ले आया अपने साथ,  रिक्शे से किसी वाहन में बिठाया, सामान लिया और चल पड़ा। जाना कहाँ था नहीं मालूम, बड़ा अजीब सपना था, इजा आज भी रो रही थी, मैं उससे लिपट कर रो पड़ा था। सपनों के भी मायने होते होंगे, शायद मैं मूरख अब तक नहीं समझ पाया।

फाम

वो नहीं बस उसकी फाम ही आती है, कुछ नहीं उससे मेरा तार्रुफ़ अकाम ही आती है, हां पर कई दफ़े भूल जाता हूँ कई दफ़े फाम ही आती है, पहले पहल डीठ थी सिर्फ,  अब तो डीठ कम फाम ही आती है।  कुछ शनै-शनै सा था आना, सुनो अब धड़ाम ही आती है। वो नहीं बस उसकी फाम ही आती है।

अजनबी

बुना हुआ मार्ग था आने का उनका, उन्हें कैसे अजगबी कह दूँ? कुछ संगीन से थे रिश्ते उनसे, उन्हें कैसे अजनबी कह दूँ.? कुलीन थे वो कहना ही होगा, आज बिछड़ने पर कैसे भला कुनबी कह दूँ.? एक बात, मुलाकात की दरकार रही जिनसे कैसे उन्हें अजनबी कह दूँ.?