बरी
लड़खड़ाई आवाज़,
मय में जरा सा डूबा था स्वर,
उसने जो कहा
एक योजनावधि का बोझ
एक पल में छूमंतर हो गया।
मैं जिस अपराधबोध से जूझता आ रहा था इतने बरस,
एक मयशीन आवाज़ ने मुझे बरी कर दिया।
मैं खुश भी था,
और कुछ अन्तस् में दुःख भी था,
जो भी हो मैं कभी न किये गए अपराध से,
कल रात बरी हो गया।
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