पुराना दिन
एक पुराना दिन,
पुराना ही घर,
इजा-बाबू, मैं
मुझे कहीं निकलना है,
आने के समय बाबु बाहर बैठे है,
इजा अंदर है,
मैं तैयार होकर मिलने गया,
इजा ने जा लाटा जा कहते हुए
1-1 के दो सिक्के दिए,
और कहा मेरे पास यही है,
मैं इजा को देखा वो रो रही है,
मैं भी लिपट के रो पड़ा,
मैं इजा को बोला इजा चल मेरे साथ
वो तैयार न हुई,
और मैं जबरन उसे उठाकर ले आया
बाहर से बाबू को भी ले आया
अपने साथ,
रिक्शे से किसी वाहन में बिठाया,
सामान लिया और चल पड़ा।
जाना कहाँ था नहीं मालूम,
बड़ा अजीब सपना था,
इजा आज भी रो रही थी,
मैं उससे लिपट कर रो पड़ा था।
सपनों के भी मायने होते होंगे,
शायद मैं मूरख अब तक
नहीं समझ पाया।
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