शब्दों चलो
शब्दों चलो जाओ दूर जंगल में, अंतिम छोर में गाँव के, जहाँ रात होते ही सन्नाटा काटने दौड़ता है, उसी सन्नाटे की सह में आशियाँ बनाते है। शब्दों चलो जाओ दूर सहर के, साँझ की गोद में, जहाँ उजियारा भी दम तोड़ देता है, उसी गोद में सर रखकर कुछ गुनगुनाते है। शब्दों सुनों लौट चलो उस कलम में, लहू बनकर उतरते हो जहाँ तुम, जहाँ राग-ताल बिना जहाँ नाचना होता है, उसी लहू के कतरों को बताना है, उनसे कहना दुःखी हूँ मैं, पता नहीं क्यों, कोई वाजिब कारण तक नहीं है।