परीक्षाएं
सुनो परीक्षाएं होंगी, होते रहेंगी।
एक से तुम्हारा अंत नहीं हो सकता,
एक से बस शुरुआत होती है।
कइयों से तुम्हरा अंत नहीं हो सकता,
क्या एक पत्थर से घर बनता है भला.?
जाने कितने ही पत्थर केवल नींव में डाल देते हैं जो दिखते भी नहीं।
ऐसे ही बहुत सी परीक्षाएं दे दिया अब नहीं होगा का ख्याल निकाल फेंको।
चलो अभी घर नहीं बना तुम्हारा,
मात्र मकान की छत डलनी रह गई हो शायद,
इसलिए एक और बार उठो और बहुत सी परीक्षाओं को देने का साहस अपने अंदर भरो।
शायद इनमें से कोई एक परीक्षा आपके लिए छत बने।
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