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पुरुष की महानता खातिर

मिट्टी, पानी और बयार धूम सिंह नेगी जी की यह पुस्तक पढ़ते हुए किसी विभूति का वर्णन सुन रहा था जिसमें लिखा था कि फलां ने बिना दहेज के सामान्य से परिवेश में ब्याह कर लिया और फिर उसकी पत्नी का नाम एकमात्र बार आकर पूरी जीवन यात्रा में समाप्त हो गया। क्या किसी स्त्री को चकाचौंध, जमावड़ा ढोल दमाऊ नहीं पसंद रहे होंगे, माना नहीं भी पसंद रहे होंगे तो क्या उसने पुरुष के साथ जीवन यात्रा प्रारंभ की तो बस किसी साधन की भाँति उसकी महानता के उपयोग मात्र हेतु? क्या कोई अभिलाषा, कोई अतृप्त स्वप्न उस स्त्री के जेहन में नहीं रहा होगा? हरेक महापुरुष जीवन व्यतीत करता है पूर्ण करके स्वर्ग सिधार जाता है पर वो स्त्री जो उसके साथ माना मात्र अंधेरे से कमरे की ही ही साथी रही हो उसके भी तो कोई दिवास्वप्न रहे होंगे कि किसी रोज सूरज की रोशनी में उसके सपने पूरे हों.!  या यह अभिलाषा पुरुष के प्रेम की खातिर, पुरुष की महानता के खातिर त्याज्य हो गयी। महान वो है जो साबित कर रहा है अथवा महान वो है जो उसकी महानता की खातिर मौन रही और मौन ही चली गई.?

भ्रष आचरण का मूलभूत जाति और क्षेत्र वादिता

पिछड़े वर्ग से सम्बंधित आस्था नाम की एक बालिका जो अभी-अभी 12वीं करके मेडिकल की तैयारी में लगी थी उसने मेडिकल में प्रवेश के लिए अनिवार्य परीक्षा उत्तीर्ण तो की किंतु ज्ञात हुआ कि किसी लड़की ने अपने फर्जी दस्तावेज लगाकर उसके स्थान पर सीट हासिल कर ली थी। आस्था अपने अधिकार की अभिरक्षा के लिए न्यायालय के समक्ष दरकार लगाने को मजबूर हुई। मालूम हुआ कि बालिका के पिता आर्थिक रूप से सक्षम थे तो उन्होंने बेटी आस्था का एडमिशन किसी प्राइवेट कॉलेज में डेंटिस्ट की पढ़ाई के लिए करवा दिया और कोर्ट केस चलता रहा। कुछ महीनों बाद आस्था केस तो जीत गई पर चूंकि उसके पिताजी ने एडमिशन प्राइवेट कॉलेज में करवा दिया था तो वह सुनवाई में नहीं जा पाई। जज साहब जो इस केस की सुनवाई कर रहे थे ने इसका लाभ उठाकर उस सीट पर अपनी भतीजी को एडमिशन दिलवा दिया। आस्था जब एडमिशन लेना चाह रही थी तो मालूम हुआ कि जज साहब ने ही खेल खेल दिया अब वह न्याय की गुहार किससे लगाए। कुछ बरस पहले की बात है मेरे एक करीबी साथी ने एक किस्सा सुनाया था जिसे सुनकर मैं कोई प्रतिक्रिया नहीं दे सका किंतु लगभग ऐसा ही कुछ किस्सा दो रोज पहले मेरे साथ तब हुआ। सरक...
1. केवल रंगों की फुलवारी नहीं, मेरे सुकूँ का सेरा है। सच है! बेशक मैं, तेरा नहीं, पर तू तो मेरा है। 2. तुम से अच्छा है तुम्हारा दायरा यकीनन, शायर तो आते-जाते रहेंगे,  पर!  बेहतरीन होगा मुशायरा यकीनन।।
एक नींद ही तो साथी है जिसकी आगोश में आते ही सबेर हो जाती है,  दिन तो यूँ कशमकश में बीतता है मेरा कि अपना वजूद भी याद नहीं रहा।

भागिनि एक लोकगाथा

राधे-राधे.! एक लोकगाथा है भागिनि की। भागिनि माने भाग्य लिखने वाली। यह कथा बचपन मे पिताजी सुनाते थे और कहते थे जो भाग्य में है वही होगा। भागिनि हररोज अपने काम में व्यस्त रहती थी और उसकी एकमात्र लड़की थी जिसे समय नहीं दे पाती थी। एक रोज उसकी लड़की खिन्न होकर पूछती है कि ईजा तू रोज इतना बिजी रहती है मुझे जरा भी समय नहीं देती सबकी ईजाएँ कितना प्यार करती है अपने बच्चों को। भागिनि उत्तर देती है चेली मैं लोगों के भाग्य लिखती हूँ मेरे पर काम का बहुत जिम्मा है इसलिए मैं तुझे समय नहीं दे पाती। बेटी बिदक कर कहती है ईजा तू झूठ कहती हैं भाग्य भी कौन लिखता है! अगर तू सच कहती है तो बता मेरे भाग्य में क्या लिखा है? ईजा थोड़ा रुककर बोलती है चेली कैसे बताऊँ यह बहुत रहस्य का काम है। बेटी कहती है या तो ईजा तू झूठ कहती है या फिर सच कहती है तो मेरे भाग्य का बता। ईजा विवश होकर उसके भाग्य का लेख बताती है कि चेली तेरे भाग्य में लिखा है तेरा विवाह तेरे बेटे से ही होगा। बेटी यह सुनकर हंसती है और प्रण लेती है कि अपनी माँ को झूठा साबित करेगी। बेटी दूर अकेले जंगल में रहने लगती है न कोई आदमी न कोई ग्रामीण जीवन हर तरफ ब...
            हर रोज की तरह, एक रोज आएगी तुम ख़्वाब! सुकूँ बन जाओगे, मैं रोजमर्रा सा रहूँगा। हर सुबह मैं ख़्वाब शहर आ जाता हूँ उठते ही आदत हो गई है मेरी सोचता हूँ कोई संदेश तो होगा, कुछ तो उकेरे होंगे तुमने अपने जीवन के किस्से कुछ खुशनुमा सन्देश कुछ दर्द की बातें। मैं रीता हो गया हूँ इन दिनों न आँखे गीली होती है, न कलम बढ़ती है, न एकांत का समय है सच कहूँ तो कभी डरता हूँ ये क्या हो गया मुझे फिर कभी सोचता हूँ सही तो है व्यस्त हो गया हूँ, और शायद तुम भी व्यस्त हो गए होंगे अपने परिसर में, जो भी हो लगता है जीवन आम सा हो गया है अब। मैं हमेशा सोचता था कि साहिर, अमृता या इमरोज ही कहानी के पात्र है, एक सुधा भी थी वहाँ सदैव के लिए, ये बात जरा देर से जान सका। तुम  अमृत भी हो सुधा भी, और मैं न साहिर न इमरोज। सच कहूँ तो मैं प्रीतम हूँ कहानी का वह हिस्सा जो सुन्न पड़ गया है। उस पर न तो किसी को कोई दिलचस्पी होनी थी और न ही उस तरफ कोई सोच।
जा चमक कि रोशनी से गुलजार हो जहाँ, ये देश है मेरा, हाँ देश है मेरा  धुप अँधेरा है चहुं ओर यहाँ। बदरा बिन बारिश के घूम-घूम वापस होरे हैं, पीतल, सोना और सोना, पीतल हैं यहाँ