तुम.

सर्द हवा हो जाना जनवरी हो तुम,
धीमी सी सही मगर सुरूर में जो आये
माह-ए-मुहब्बत फरवरी हो तुम।

मार्च का बसन्त हो, अप्रैल की फसल हो,
हासिल सारा सूद है, जीवन का तुम असल हो।

मई-जून की लू जैसी तुम,
कभी नयनों का सावन-भादो हो,
जीवन मेरा सूखी भूमि,
तुम जुलाई-अगस्त सी कादो हो।

सितंबर जैसी बरसाती अंत सा,
अक्टूबर-नबम्बर सी पसरी शांति तुम।

पके खेत सा शांत खड़ा मैं,
उसका तुम रक्षण बाड़ा हो,
जीवन के अंत का जाना,
दिसंबर जैसा तुम जाड़ा हो।


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