साला दोस्त-2

दिन बीते, महीने बीते और फिर साल बीते, मैं सोचता हूँ! कि क्या जोड़े रखा हमें इतने समय जबकि मैं साधारण सा बस डरपोक सा और वो हर नई जगह सर्वाइव और शासन करने का साहस रखने वाला व्यक्ति कितने विपरीत हैं हम। मेरे कई सारे राजों को सीने में दफन करने वाला वो शख्स सच में हक़ योगी सा लगता है।

पीछे मुड़ता हूँ तो कभी-कभी मुझे लगता है जैसे वो गोद लिया गया हो उसके माँ-बाप कहीं सौतेले न हों। (आश्चर्य एक बार तो पूछ भी लिया था मैंने) ये ख्याल अक्सर तब आता है जब उसका विचार और संघर्ष जो शायद नहीं होने थे साफ-साफ दूर से ही दिखने लगते हैं।

बारहवीं करने के बाद कोई बड़ा तो नहीं हो जाता पर मुझे लगता है वो हो गया था। उसकी जिद थी या उसका एकहड़ियापन था कि उसने बस इसी को सार बना लिया था ये उसका बल था कि निर्बलता इस पर मैंने कभी विचार नहीं किया। बारहवीं के बाद उसने अपने हाथों में अपनी जिम्मेदारी ले ली थी जो उसके लिए कब ताकत से कमज़ोरी बन गई कोई जवाब नहीं है इसका।

बात शुरुआती मुलाकात से बहुत आगे निकल गई थी मैं अक्सर चर्चाओं में अपनी बातें रख देता था पर उसने कभी अपने बारे में अधिक विस्तार से विवरण पेश नहीं किया। बादलों से घिर जाने से आसमान की खूबसूरती कभी निखर जाती है तो कभी डरावनी हो जाती है। यहाँ भी ऐसा ही था कब निखार आया और कब डरावना बना समझ नहीं आया कभी। मेरी हैरानी उस रोज सबसे अपने चरम पर पहुँची जब बातों-बातों में किसी रोज उसने कहा कि मैंने इस शहर में आकर सबसे पहले इस दुकान में सेल्स की नौकरी शुरू की। मैं हैरान था जिस शहर में मुझे सामान खरीदने तक में संशय होता है उस शहर में यह दुकान में नौकरी कैसे कर सकता है.? शायद मेरे विचार बहुत ज्यादा खुले नहीं थे तब किसी भी मामले में अक्सर अपनी राय बना लेना मेरे लिए आम बात थी।

उसके घर वाले चाहते थे कि वह कमाए और वो भी सच में चाहता था कि वो कमाए और सिर्फ अपने सपने पूरे करे, और वो ऐसा करता भी था वह एक टारगेट निर्धारित करता था और फिर उसकी पूर्ति के लिए काम करता था। बहुत बाद में जब मुझे पश्चिमी देशों में होने वाले समाजिक ढाँचें को देखकर लगा कि वह शायद जाने-अनजाने उन विचारों में था। वो शायद अपने वातावरण के कुछ प्रभावों के कारण नौकरी की तलाश हेतु भी प्रयासरत हो गया था। वह सरकारी नौकरी के लिए पढ़ाई के लिए कबसे अग्रसर हुआ ये तो मुझे नहीं मालूम पर उत्तराखण्ड में भी पद आते है उसकी भी तैयारी की जा सकती है ये शायद हम लोगों से जुड़कर ही वो समझ सका था, हालांकि वो तैयारी को लेकर कई बार सीरियस दिखता था उसे हिंदी भाषा से समस्या थी चूँकि बचपन उसके उत्तर-पूर्व के राज्य असम में व्यतीत किया था जिस कारण उसकी हिंदी की समझ इतनी अच्छी नहीं थी। कई बार वो अपने से हट भी जाता था। सच कहूँ तो यही उतार चढ़ाव था जो हमारे सम्बन्धों और विचारों को धार देता था।

कभी-कभी कह देता है कि मुझे पैसे कमाने है एक घर बनाना है और फिर मैं सबसे रिश्ता तोड़ दूंगा। पहलीं बार तो मैं उसी आश्चर्य से उसे देख रहा था जैसे किसी वैज्ञानिक के सालों  की सफल खोज को आज जाकर उसी खोज का नया फॉर्मूला मिल गया हो। पर बाद में आदत हो गई और ऐसी बात होते ही मैं दार्शनिक बन जाता। ये सोचते हुए हँसी भी आती है कि मैं एक ऊँचे टीले के सामने एक कम ऊँची मीनार खड़ी करने की कोशिश करता था।


ये लेखन बदस्तूर जारी रहेगा और मैं तब तक लिखूंगा जब तक पूरा चरित्र मेरी उंगलियों से यहाँ न छप जाय।

Comments

  1. बहुत सुंदर लेखनी आपने जिन शब्दों के साथ अपने दोस्त को बयां किया है जरूर ही उनका जिदंगी जीने का नजरिया अलग दुनियां की वजह से ही हुआ हो।लेकिन जिन शब्दों से आपने उन्हें लिखने का प्रयास किया है वो एक छवि बनाते है।आगे की लेखनी का इंतजार रहेगा।बहुत बहुत प्रभवशाली लेखनी।👌

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