नींद में खलल
नींद में खलल है फिर,
हृदय हुआ है अस्थिर।
ये मिज़ाज़ है मौसम का या कोई लम्हा रोया है,
कराह है चारों तरफ,
दुख रहा है तिर।
मेहमाँ भी मेजबान बन बैठे है आशियाने में,
उड़ जाने वाला पँछी कहीं सुदूर देशों में, बैठा है अब चिर।
नींद में खलल है फिर.....
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